Class 10 Hindi Chapter 1, Best Notes and Solutions

In Class 10, Hindi is an essential subject that plays a significant role in the overall curriculum. One of the critical chapters in the Hindi syllabus is Chapter 1. In this article, we will explore the best notes and solutions available for Class 10 Hindi Chapter 1. These resources aim to help students understand the concepts thoroughly, excel in their exams and develop a deeper appreciation for the language. These notes are strictly based on the latest NCERT book.

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Chapter 1 – पद

सूरदास द्वारा रचित ‘सूरसागर” के “भ्रमरगीत” से यहाँ चार पद लिए गए हैं। श्रीकृष्ण ने मथुरा जाकर गोपियों को कोई संदेश नहीं भेजा, जिस कारण गोपियों की विरह वेदना और बढ़ गई। श्रीकृष्ण ने अपने मित्र उद्धव के माध्यम से गोपियों के पास निर्गुण ब्रह्म एवं योग का संदेश भेजा, ताकि गोपियों की पीड़ा को कम किया जा सके। गोपियाँ श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं, इसलिए उन्हें निर्गुण ब्रह्म एवं योग का संदेश पसंद नहीं आया। तभी एक भौंरा यानी भ्रमर उड़ता हुआ वहाँ आ पहुँचा, गोपियों ने व्यंग्य (कटाक्ष) के द्वारा उद्धव से अपने मन की बातें कहीं।

इसलिए उद्धव और गोपियों का संवाद “भ्रमरगीत” नाम से प्रसिद्ध है। गेपियों ने व्यंग्य करते हुए उद्धव को भाग्यशाली कहा है, क्योंकि वे श्रीकृष्ण के सान्निध्य में रहने के बावजूद उनसे प्रेम नहीं करते और इसका प्रमाण है उद्धव द्वारा दिया गया योग साधना का उपदेश। गोपियाँ योग साधना को स्वयं के लिए व्यर्थ बताती हैं। साथ ही, उन्होंने श्रीकृष्ण को उनका राजधर्म भी याद दिलाया है। 

कवि-परिचय 

हिंदी साहित्य की भक्तिकालीन काव्यधारा के कवि सूरदास का जन्म 1478 ई. में सीही नामक गाँव में हुआ था। कुछ विद्वानू उनका जन्मस्थान मथुरा के निकट रुनकता या रेणुका क्षेत्र को मानते हैं। सूरदास मंदिर में भजन-कीर्तन करते थे, जिसके कारण उनकी ख्याति जगह-जगह फैल गई। सूरदास जन्म से नेत्रहीन थे या बाद में नेत्रहीन हुए इसके निश्चित प्रमाण नहीं मिलते। वह महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य थे। सूरदास के तीन लोकप्रिय ग्रंथ- सूरसागर, साहित्य लहरी और सूरसारावली हैं।

सूरदास ने कृष्णलीला संबंधी पदों की रचना सूरसागर में की, जो कि उनकी लोकप्रियता का प्रमुख आधार है। सूरदास के सभी पद गायन शैली में लिखे गए है। वे श्रृंगार और “वात्सल्य ” रस के कवि माने जाते हैं। सूरदास की भाषा सहज, स्वाभाविक व माधुर्य से परिपूर्ण ब्रजभाषा है, जिनमें अलंकारों का प्रयोग अत्यंत सुंदर ढंग से किया गया है। सूरदास का निधन 1583 ई. में पारसौली में हुआ।

पदों का भावार्थ

पहला पद 

ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।

अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।

पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।

ज्यों जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकों लागी।

प्रीति नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।

“सूरदास” अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यों पागी।

व्याख्या

गोपियाँ उद्धव की प्रेम के प्रति अनासक्ति पर व्यंग्य करते हुए कहती हैं कि हे उद्धव! तुम तो बड़े भाग्यवान हो, क्योंकि तुम प्रेम के बन्धन से दूर हो। तुमने अभी प्रेम के प्रति आकर्षण को नहीं जाना है। श्रीकृष्ण के इतने करीब रहकर भी तुम्हारा मन उनके प्रेम में नहीं डूबा है। तुम तो जल के बीच रहने वाले उन कमल के पत्तों के समान हो, जो जल में रहकर भी दाग-धब्बों से अछूते रहते हैं। जिस प्रकार, तेल से भरी गगरी को जल में डुबाने पर उस पर जल की एक भी बूँद नहीं ठहरती, ठीक उसी प्रकार तुम भी श्रीकृष्ण के निकट रहने पर भी उनके प्रभाव से मुक्त हो। तुम कभी उनके प्रेम में नहीं डूबे।

तुमने कभी भी प्रेमरूपी नदी में पैर नहीं रखा और न ही तुमने किसी पर प्रेम-भरी दृष्टि डाली, ये तुम्हारी महानता है, परन्तु हम तो भोली-भाली ब्रजबालाएँ हैं जो अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के रूप-सौन्दर्य पर उसी प्रकार आसक्त हो गई हैं, जिस प्रकार चींटियाँ गुड़ के प्रति आकर्षित होकर उससे लिपट जाती हैं, फिर छूट नहीं पातीं , गुड़ पर लिपटे हुए ही अपने प्राण त्याग देती हैं। वास्तव में गोपियाँ प्रेम के प्रति अनासक्ति रखने वाले उद्धव को अभागा कहना चाह रही हैं।

दूसरा पद 

मन की मन ही माँझ रही।

कहिए जाइ कौन पै ऊधौ , नाहीं परत कही।

अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।

अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।

चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।

‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं मरजादा न लही।

व्याख्या

विरहाग्नि में दग्ध गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव! हमारे मन में जो कृष्ण प्रेम की बातें थीं वह तो तुम्हारे सन्देश को सुनने के बाद हमारे मन में ही दबी रह गईं। हम उस भावना को व्यक्त नहीं कर पायीं। हमने सोचा था कि कृष्ण के मथुरा से लौटने पर हम अपनी वियोग-व्यथा विस्तारपूर्वक उन्हें सुनायेंगी। कृष्ण के लौटकर आने की प्रतीक्षा में ही हम जी रहे थे, परन्तु अब हम क्या करें? श्रीकृष्ण तो लौटकर नहीं आये, बल्कि हमारे हृदय को व्यथित करने वाला यह योग-साधना का सन्देश तुम्हारे द्वारा भेज दिया। इस योग-सन्देश को सुनकर हमारे अन्दर विरह की ज्वाला और अधिक भड़क गयी है और हम उसमें जली जा रही हैं।

हमारा दुर्भाग्य यह है कि जिधर हमें अपना रक्षक दिखाई दे रहा था, उधर से ही योग-सन्देश रूपी प्रबल धारा प्रवाहित हो रही है, अर्थात्‌ जिन्हें हम अपनी रक्षा हेतु पुकारना चाहती थीं, उन्होंने ही हमारे लिए योग-सन्देश भिजवाया है। गोपियाँ कहती हैं कि अब हम धैर्य कैसे धारण करें, जिस कृष्ण के लिए लोकलाज तथा मर्यादा को त्याग दिया था, उन्होंने ही आज हमारा त्याग कर दिया है, जिससे हमारी मर्यादा नष्ट हो गयी है।

तीसरा पद

हमारौं हरि हारिल की लकरी।

मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।

जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जकरी।

सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यों करुई ककरी।

सु तौ ब्याधि हमकों लै आए, देखी सुनी न करी।

यह तौ ‘सूर’ तिनहिं ले सौंपो, जिनके मन चकरी।

व्याख्या

उद्धव के योग-सन्देश को सुनने के पश्चात्‌ गोपियाँ उनके सभी प्रश्नों का उत्तर बड़ी दृढ़ता के साथ देती हैं। वो कहती हैं कि श्रीकृष्ण तो हमारा एकमात्र सहारा हैं। वे हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं। जिस प्रकार हारिल पक्षी सदैव लकड़ी को दृढ़ता के साथ पंजों में दबाये रखता है। उसे कभी अपने से अलग नहीं करता, उसी प्रकार हमने भी श्रीकृष्ण को मजबूती से अपने हृदय में बसा रखा है। हम उन्हें स्वयं से अलग नहीं कर सकते। मन, वचन और कर्म से हमने नंद के नंदन अर्थात्‌ श्रीकृष्ण को अपने चित्त में बसा लिया है। अब हम जागते-सोते, दिन और रात में यहाँ तक कि स्वप्न में भी कान्हा-कान्हा कहकर पुकारते रहते हैं।

ऐसी दशा में योग-सन्देश सुनकर ऐसा लगता है, जैसे हमने कड़वी ककड़ी खा ली हो। तुम्हारे योग सम्बन्धी ज्ञान में हमें कोई रूचि नहीं है। हे उद्धव! तुम हमारे लिए ये कौन-सी बीमारी ले आये हो? जिसे हमने न कभी देखा है, न सुना है और न भोगा है? गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि है उद्धव! तुम ऐसा करो इस व्याधि (बीमारी) को उन लोगों को ले जाकर सौंप दो जिनके मन अस्थिर हैं तथा चक्र के समान चंचल हैं। हमारा मन तो स्थिर है। हमें आपका यह योग सन्देश अच्छा नहीं लग रहा।

चौथा पद

हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।

समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।

इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।

बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग संदेस पठाए।

ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।

अब अपने मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए। 

ते क्‍यों अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए। 

राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।।

व्याख्या

श्रीकृष्ण द्वारा भेजे गये योग-सन्देश को सुनकर गोपियाँ उन्हें अन्यायी तथा अत्याचारी मानने लगती हैं। उन्हें लगता है कि श्रीकृष्ण ने अब राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली है तथा वे राजनीति में निपुण हो गये हैं। वे कहती हैं कि उद्धव द्वारा दिये गये समाचार सुनकर ही हमारी समझ में सारी बात आ गई थी। एक तो श्रीकृष्ण पहले से ही बहुत चालाक थे,

ऊपर से उन्होंने गुरुओं द्वारा रचे ग्रन्थ भी पढ़ लिये हैं। उनकी महान्‌ बुद्धिमत्ता का अनुमान तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने हम जैसी कोमल अबलाओं के लिए इतना कर्कश योग-सन्देश भिजवाया है। हमारे हिसाब से कोमल युवतियों के लिए योग-सन्देश भिजवाने में कोई बुद्धिमानी नहीं है, क्योंकि योग-साधना युवतियों के लिए उचित नहीं है। इस विषय में श्रीकृष्ण का निर्णय विवेकपूर्ण नहीं है। गोपियाँ उद्धव को सम्बोधित करते हुए कहती हैं कि हे उद्धव! इससे तो पुराने जमाने के लोग अच्छे थे, जो दूसरों की भलाई के लिए दौड़कर आगे आते थे। चलो कोई बात नहीं जो होना था वह हो गया। कृष्ण ने हमें त्याग दिया।

अब हमें हमारे मन वापस मिल जायेंगे, जिन्हें कृष्ण मथुरा जाते समय चुराकर ले गये थे, परन्तु एक बात हमारी समझ में नहीं आती कि जे श्रीकृष्ण दूसरों को अन्याय से बचाते हैं, वे हमारे साथ इतना बड़ा अन्याय कैसे कर सकते हैं? गोपियाँ उद्धव को राजनीति की सीख देते हुए कहती हैं कि हे उद्धव! राजधर्म तो यही कहता है कि प्रजा को सताना नहीं चाहिए फिर श्रीकृष्ण हमें क्यों सता रहे हैं? हमारी उनसे गुहार है कि वे हमारी रक्षा करें।


Class 10 Hindi Chapter 1 NCERT Solutions

प्रश्न 1. गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?

उत्तर – गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहकर वास्तव में उसके दुर्भाग्य पर व्यंग्य किया गया है। जो व्यक्ति प्रेम के साथ, श्रीकृष्ण के समीप रहकर भी प्रेम रूपी जल को प्राप्त नहीं कर सकता, वह वास्तव में दुर्भाग्यशाली ही होगा। गोपियाँ प्रत्यक्ष रूप से उद्धव को भाग्यशाली कहकर प्रशंसा करती हैं, पर प्रेम के आनंद से वंचित उद्धव निपट अभागे हैं, क्योंकि वे श्री कृष्ण के सान्निध्य में रहकर भी उनके प्रेम से वंचित हैं। उनके कहने का अभिप्राय यह है कि उद्धव के हृदय में प्रेम जैसी पावन भावना का संचार नहीं है, इसलिए वे भाग्यवान नहीं अपितु भाग्यहीन हैं।

प्रश्न 2. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किससे की गई है?

उत्तर – उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते और तेल की मटकी से करते हुए गोपियाँ कहती हैं कि जिस प्रकार कमल का पत्ता जल में ही रहता है, फिर भी उस पर पानी का धब्बा तक नहीं लग पाता, उसी प्रकार तेल की मटकी को पानी में रखने पर उस पर जल की एक बूंद तक नहीं ठहर पाती, ठीक वैसे ही उद्धव कृष्ण के समीप रहते हुए भी उनके रूप के आकर्षण तथा प्रेम-बंधन से सर्वथा मुक्त हैं।

प्रश्न 3. गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?

उत्तर – गोपियों ने निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा उद्धव को उलाहने दिए हैं :-

वे कहती हैं कि हे उद्धव! हमारी प्रेम भावना हमारे मन में ही रह गई है। हम तो कृष्ण को अपने मन की प्रेम-भावना बताना चाहती थी किंतु उनका यह योग का संदेश सुनकर ही हम उन्हें कुछ भी नहीं बता सकतीं। हम तो श्रीकृष्ण के लौट आने की आशा में जीवित हैं। हमें उम्मीद है कि श्रीकृष्ण अवश्य ही एक न एक दिन लौट आएँगे, किंतु उनका यह संदेश सुनकर हमारी आशा ही नष्ट हो गई है, और हमारे विरह की आग और भी भड़क उठी है । इससे तो अच्छा था कि उद्धव आते ही नहीं।

गोपियों को यह भी आशा थी कि श्रीकृष्ण प्रेम की मर्यादा का पालन करेंगे। वे उनके प्रेम के प्रतिदान में प्रेम देंगे। किंतु उन्होंने निर्गुणोपासना का संदेश भेजकर प्रेम की सारी मर्यादा को तोड़ डाला। इस प्रकार वह मर्यादाहीन बन गया है।

प्रश्न 4. उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?

उत्तर – गोपियाँ कृष्ण के वियोग में विरहाकुल थीं। वे अपनी व्यथा को यह मानकर झेल रही थी कि उनके परम प्रिय श्रीकृष्ण जल्द ही वापस लौट आएँगे। परंतु जब उनके स्थान पर योग के संदेश के साथ उद्धव आए तो उनकी विरह की अग्नि और भी भड़क उठी। उद्धव के योग संदेश ने उनकी विरहागिन में घी का काम किया।

प्रश्न 5. ‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?

उत्तर – गोपियाँ अभी तक कृष्ण की प्रतीक्षा मर्यादा रहकर कर रही थीं। परंतु उद्धव का योग संदेश के साथ आगमन ने गोपियों को सभी मर्यादाओं को तोड़ दिया। अर्थात गोपियाँ अब अपनी सभी सीमाएँ तोड़कर उद्धव से सवाल जवाब करती है और कृष्ण को भला-बुरा कहती हैं।

प्रश्न 6. कृष्णा के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है ?

उत्तर – गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति अगाध प्रेम था। उन्हें तो सिवाय श्रीकृष्ण के और कुछ सूझता ही नहीं था। वे तो उनके रूप-माधुर्य में इस प्रकार उलझी हुई थीं जिस प्रकार गुड़ पर चींटी आसक्त होती है। जब एक बार चींटी गुड़ चिपक जाती है तो फिर वहाँ से कभी-भी नहीं छूट पाती। वह उसके लगाव में अपना जीवन वहीं त्याग देती है।

गोपियों को तो ऐसा प्रतीत होता था कि उनका मन श्री कृष्ण के साथ मथुरा चला गया है। वे तो हारिल पक्षी के समान मन, वचन, कर्म से उनसे जुड़ी हुईं थीं। उनके प्रेम की अनन्यता ऐसी थी कि रात दिन सोते जागते श्रीकृष्ण को ही याद करती थी।


प्रश्न 7. गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?

उत्तर – गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा वैसे लोगों को देने की बात कही जिनका मन चकरी की तरह घूमता रहता है। अर्थात जिनका मन स्थिर नहीं है।

प्रश्न 8. प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – गोपियाँ योग साधना को जीवन में नीरसता और निष्ठुरता लाने वाला मानती हैं। योग-ज्ञान का रास्ता अग्नि के समान जलने वाला तथा घोर दुख देने वाला है। योग-साधना को अपनाने की बातें उनकी विरहाग्नि को और अधिक बढ़ा देती है। योग-साधना उन्हें एक कड़वी-ककड़ी के समान अग्रहणीय लगती है। योग-साधना उन्हें एक ऐसे रोग के समान लगती है जिसे उन्होंने न तो पहले कभी देखा, न सुना और न ही कभी भोगा।

प्रश्न 9. गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?


उत्तर –
 गोपियों के अनुसार राजा का धर्म यह है कि वह प्रजा को किसी भी तरह का कष्ट नहीं होने दे व उनकी रक्षा करे। वह कभी भी अपनी प्रजा को सताए नहीं।


प्रश्न 10. गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?


उत्तर –
 गोपियाँ मानती हैं कि कृष्ण ने राजनीति में पूरी दक्षता प्राप्त कर ली है इसीलिए उद्धव के माध्यम से योग-साधना का संदेश भेजा है। वे इतने चतुर हैं कि पहले तो अपने प्रेम-जाल में फंसा लिया और अब योग-शास्त्र का अध्ययन करने को कह रहे हैं। यह उनकी बुद्धि और विवेक का ही परिचय है कि उन्होंने उन अबलाओं को योग के कठिन रास्ते पर चलने का संदेश दिया है।

कृष्ण भले नहीं हैं। भले लोग तो भलाई के लिए इधर-उधर भागते फिरते हैं। कृष्ण दूसरों को तो अन्यायपूर्ण कार्य करने से रोकते हैं और स्वयं अन्यायपूर्ण आचरण करते हैं। इन्हीं परिवर्तनों के कारण गोपियाँ कृष्ण से अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं।

प्रश्न 11. गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर – ‘भ्रमरगीत’ के माध्यम से सूरदास ने गोपियों के मन की व्यथा को साकार किया है। यहाँ जब उद्धव गोपियों को ज्ञान और योग का उपदेश देते हैं तब गोपियों की यही स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है कि वे श्रीकृष्ण के रंग में रंगी हैं, उन्हें योग और साधना नहीं चाहिए। उनके वाक्चातुर्य में हास्य और व्यंग्य का पुट है।

उद्धव गोपियों को निर्गुण ब्रह्म का पाठ पढ़ाते हैं तो गोपियाँ तीखे व्यंग्य का प्रयोग करती हैं। निर्गुण ब्रह्म की जगह श्रीकृष्ण की श्रेष्ठता और महानता को सिद्ध करती है। उद्धव के ज्ञान और योग का गोपियों ने उपहास उड़ाया है। इसके दो कारण हैं – एक तो वे श्रीकृष्ण के मित्र हैं और दूसरे यह कि उद्धव प्रेम की पीर से सर्वथा अनभिज्ञ हैं।

प्रश्न 12. संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए।


उत्तर –
 सूरदास के भ्रमरगीत की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

1. गोपियाँ ऊधौ के सामने खुलकर अपनी उलाहना प्रकट करती हैं।

2. इसमें ब्रजभाषा की कोमलता, मधुरता और सरसता के दर्शन होते हैं।

3. इनकी भाषा अलंकार- युक्त है। उनका प्रयोग स्वाभाविक है। कहीं-कहीं अलंकार नहीं के बराबर है तो भी सरसता में कोई कमी नहीं आई है।

4. भ्रमरगीत में व्यंग्य, कटाक्ष, उलाहना, निराशा, प्रार्थना, गुहार आदि अनेक मनोभाव तीखे तेवरों के साथ प्रकट हुए हैं।

5. इसमें कृष्ण के ज्ञानी मित्र उद्धव को निरुत्तर, मौन और भौचक्का-सा दिखाया गया है।

6. इसमें गोपियों का निर्मल कृष्ण-प्रेम प्रकट हुआ है। वे कृष्ण की दीवानी हैं।
7. गोपियाँ गाँव की चंचल, अल्हड़ और वाक् चतुर बालाएँ हैं। वे चुपचाप आँसू बहाने वाली नहीं हैं, अपितु अपने भोले-निश्छल तर्कों से सामने वाले को परास्त करने की क्षमता रखती हैं।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 13. गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए। 

उत्तर – गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, हम अपनी कल्पना से और तर्क दे सकते हैं, जैसे-

(i) कृष्ण पर अपने मित्र उद्धव का गहरा प्रभाव पड़ा, इसलिए वे प्रेम के स्थान पर योग की बातें करने लगे।

(ii) कृष्ण का प्रेम एकनिष्ठ नहीं है। वे भौरे की तरह हैं, जहाँ रस देखा, वहीं ठहर गए।

(iii) निर्गुण ब्रह्म की उपासना हम गोपियों के लिए असंभव है।
(iv) कृष्ण का प्रेम अब हमारे प्रति नहीं है। वे तो कुब्जा के वश में हैं।


प्रश्न 14. उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?

उत्तर –  उद्धव ज्ञानी थे। वे नीति की बातें जानते थे इसलिए वे ज्ञान की बातों से गोपियों को प्रभावित कर सकते थे, पर गोपियों के पास श्री कृष्ण के प्रेम की शक्ति थी, जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी। श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों की एकनिष्ठा तथा दृढ़-विश्वास था, तभी वे भिन्न-भिन्न तर्क देकर उद्धव को परास्त कर सकीं।

प्रश्न 15. गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – गोपियों के अनुसार श्री कृष्ण जब ब्रज में रहते थे, तब वे अपने मित्र ग्वाल-बाल व गोपियों से मिलते थे, लेकिन जब से वे मथुरा गए हैं, तब से राज-काज को सँभालने के कारण उन्होंने राजनीति के सभी दाव-पेंच सीख लिए हैं। उद्धव द्वारा योग-संदेश भेजना भी उनकी कूट राजनीति का एक अंग है। अब उनका आचरण राजनीतिज्ञों जैसा छलपूर्ण हो गया है। आज के राजनेताओं की कथनी व करनी में पर्याप्त अंतर है। वे अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए जनता को झूठे आश्वासन देते हैं। उनका कपटपूर्ण व्यवहार जनता को भ्रमित कर देता है।

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