Class 12 Political Science Notes in Hindi Chapter 8 2nd Book

As a student in Class 12 Political Science, it is important to have access to high-quality notes that can help you understand complex topics. One of the most important topics in Class 12 Political Science Notes in Hindi Chapter 8 is regional aspirations. In this article, we will explore this topic in detail and provide you with comprehensive notes in Hindi based on NCERT Textbook that can help you understand this concept.

“क्षेत्रीय आकांक्षाएं”

भारतीय राजनीति में 1980 के दशक को स्वायत्तता की मांग के रूप में देखा जाता है।

आजादी के तुरंत बाद भारत को विभाजनविस्थापनदेसी रियासतों के विलय, और राज्यों के पुनर्गठन जैसे कठिन मसलों से जूझना पड़ा। 

*वर्तमान में भारत के विभिन्न राज्यों से स्वच्छता की मांग उठ रही है, केंद्र सरकार इन मांगों को किन नजरिए से देखती है? 

  1. भारत एक ऐसा देश है जहां विविधता बहुत है धर्म, रंग-रूप, जाति, संस्कृति, भाषाएं, रीति-रिवाज के लोग रहते हैं। 
  2. ऐसे में अलगाववाद, क्षेत्रवाद, क्षेत्रीय आकांक्षाएं उठना लाजमी है लेकिन भारत सरकार का नजरिया इनको लेकर बहुत अच्छा है। 
  3. क्षेत्रीय तथा क्षेत्रवाद को बातचीत के जरिए समझाने का प्रयास किया है। भारत में इतनी विविधता होने पर भी राष्ट्रवाद की भावनाएं लोगों में है, राष्ट्रवाद जनता के बीच एकता बनाए रखती है। 
  4. यूरोप में सांस्कृतिक विविधता को राष्ट्रवाद के लिए खतरे के रूप में देखा जाता है, लेकिन भारत सरकार का नजरिया अलग है। 
  5. भारत में विविधता के सवाल पर लोकतांत्रिक दृष्टिकोण अपनाया गया। 
  6. लोकतंत्र में क्षेत्रीय आकांक्षाओं की राजनीतिक अभिव्यक्ति की अनुमति है यहाँ आजादी है कि कोई दल क्षेत्रीय समस्या को आधार बनाकर लोगों की भावनाओं की नुमाइंदगी करें। 
  7. कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि राष्ट्रीय एकता की राह में क्षेत्रीय आकांक्षा भारी पड़े तो ऐसे में सरकार को सोच समझ कर फैसला लेना होता है। 

‘जम्मू एवं कश्मीर’

  • प्रमुख फसल

चावल, गेहूं और मक्का

  • प्रमुख झील

डल, वुलर और पांगांग झील

  • तीर्थ स्थान

वैष्णो देवी, अमरनाथ गुफा और चराए-ए-शरीफ

  • राजधानी

1. श्रीनगर (ग्रीष्मकालीन) 

2. जम्मू (शीतकालीन) 

  • जिले

22

  • राजभाषा 

उदू

  • कुल जनसंख्या (1,25,41,302) 

महिला (5,900,640) 

पुरूष (6,64,662) 

  • साक्षरता दर (70.67%) 

महिला (56.93%) 

पुरूष (76.75%) 

  • लिंगानुपात

889/1000

  • कश्मीर में मुस्लिम, हिंदू, सिख एवं कई धर्म के लोग रहते हैं। 
  • लद्दाख में बौद्ध और मुस्लिम धर्म के लोग रहते हैं। 
  • कश्मीर के लोग अपने आप को कश्मीरी पहले समझते हैं, जम्मू कश्मीर की सुरक्षा का मसला।

कश्मीर में समस्या की जड़ें :-

  1. 1947 से पहले जम्मू एवं कश्मीर में राजशाही थी और यहां हिंदू शासक हरि सिंह यहाँ के राजा थे। 
  2. यह भारत में शामिल होना नही चाहते थे और स्वतंत्र रहना चाहते थे।
  3. पाकिस्तान को यह लगता था कि ज्यादातर आबादी यहां मुस्लिम है इसलिए जम्मू एवं कश्मीर पाकिस्तान में शामिल हो जाएगा लेकिन यहां के लोग खुद को कश्मीरी मानते थे।
  4. शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में आंदोलन चला वे चाहते थे कि राजा पद छोड़ें।
  5. कांग्रेस कॉन्फ्रेंस एक धर्मनिरपेक्ष संगठन था और इसका कांग्रेस के साथ काफी समय तक गठबंधन रहा। नेहरू और शेख मित्र भी थे। 
  6. 1947 में पाकिस्तान ने कबायली घुसपैठ किया और अपनी तरफ से कश्मीर पर कब्जा करने की नापाक कोशिश करी 
  7. कश्मीर में महाराजा सेना से मदद मांगने को मजबूर हुए सेना ने मदद की। 
  8. भारत सरकार ने महाराजा से विलय पत्र पर हस्ताक्षर कराए और यह भी कहा गया कि स्थिति सामान्य होने पर जनमत संग्रह कराया जाएग। 
  9. मार्च 1948 में शेख अब्दुल्ला जम्मू एवं कश्मीर के प्रधानमंत्री बने। 
  10. भारत कश्मीर की स्वायत्तता बनाए रखने को तैयार हुआ और इसे संविधान में अनुच्छेद-370 के तहत विशेष अधिकार दिए गए। 

‘द्रविड़ आंदोलन’

दक्षिण भारत के सबसे प्रसिद्ध आंदोलनों में से एक था इसके अलावा यहां आंदोलन भारत के क्षेत्रीय आंदोलनों में सबसे ताकतवर आंदोलन था वैसे तो 1980 के बाद भारत के विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय स्वायत्तता की मांग उठ रही थी और इन्हीं में एक दक्षिण भारत का भी था दक्षिण भारत में स्वायत्तता की मांग सबसे ज्यादा मुखर हुई थी जिसके मुख्य कारण निम्न थे-

  • दक्षिण भारत भारत के अन्य राज्यों की तुलना में भौगोलिक रूप से भिन्न है। 
  • इस आंदोलन ने अपने आपको शुरुआत में तो संपूर्ण दक्षिण भारत में फैलाया परंतु यह संगठन तमिलनाडु के ही आसपास रही जिससे यह संपूर्ण दक्षिण भारत का आंदोलन ना होकर केवल तमिलनाडु तक सिमट कर रह गया था। 
  • इसके अलावा दक्षिण भारत में भाषाई विविधता पाई जाती है।
  • जिसकी वजह से इसके राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक सरोकार विभिन्न रहे हैं।

द्रविड़ आंदोलन की विशेषता :-

  • भारतीय राजनीति में यह आंदोलन क्षेत्रीयतावादी भावनाओं की सर्वप्रथम और सबसे प्रबल अभिव्यक्ति थी। 
  • इस आंदोलन में कभी भी सशस्त्र संघर्ष का रास्ता नहीं अपनाया। 
  • इस आंदोलन के नेतृत्व को आगे बढ़ाने के लिए सार्वजनिक बहस और चुनावी मंचों का इस्तेमाल किया गया। 

द्रविड़ आंदोलन की मुख्य मांगे :- 

  • इस आंदोलन के कार्यकर्ता एवं द्रविड़ स्वतंत्र राष्ट्र बनाने की मांग कर रहे थे। 
  • इसकी दूसरी मांग यह थी कि तमिल को मुख्य भाषा के रूप में दर्जा दिया जाए।

द्रविड़ कषगम का सूतपात :-

द्रविड़ आंदोलन की बागडोर तमिल समाज सुधारक ‘ई. वी.रामास्वामी नय्यर (पेरियार)’ के हाथों में था, इसी के बाद यह आंदोलन राजनीतिक ढांचे में ढलता चला गया जिससे एक राजनीतिक संगठन का विकास हुआ जिसे द्रविड़ कषगम के नाम से जाना गया। 

द्रविड़ कषगम का प्रभाव :- 

द्रविड़ कषगम ब्राह्मणों के वर्चस्व का विरोध करता था, तथा उत्तरी भारत के राजनीतिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक प्रभुत्व को नकारते हुए क्षेत्रीय गौरव की प्रतिष्ठा पर जोर देता था। 

द्रविड़ कषगम :-

  • द्रविड़ कषगम (पेरियार) 
  • द्रविड़ मुनेत्र कषगम (DMK) 

*सन 1953 54 के दौरान DMK के 3 सूत्री आंदोलन के साथ राजनीति में कदम रखा और इस आंदोलन की तीन प्रमुख मांगे कौन सी थी? 

  1. इस आंदोलन की पहली मांग यह थी कि कल्लाकुडी नामक रेलवे स्टेशन का नया नाम डालमियापुरम निरस्त्र किया जाए और स्टेशन का मूल नाम बहाल किया जाए। 
  2. दूसरी मांग यह थी कि स्कूली पाठ्यक्रम में संस्कृत के इतिहास को ज्यादा महत्व दिया जाए। 
  3. इस संगठन की तीसरी मांग यह थी कि राज्य सरकार शिल्पकर्म शिक्षा कार्यक्रम पर ज्यादा ध्यान दें ताकि राज्य के सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके। 

सन 1965 में DMK ने हिंदी को राजभाषा बनाने के विरोध में एक हिंदी विरोधी आंदोलन चलाया यह आंदोलन काफी सफल रहा तथा जिसके कारण DMK वहां की जनता के बीच काफी लोकप्रिय बनी। 

भारत सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत दिए गए विशेषाधिकार को लेकर विरोध प्रतिक्रियाएं :-

  • लोगों का एक समूह मानता है कि किस राज्य को धारा-370 के तहत विशेष दर्जा देने से यह भारत के साथ पूरी तरह नहीं जुड़ पाए हैं यह समूह मानता है कि धारा-370 को समाप्त कर देना चाहिए और जम्मू एवं कश्मीर को भी भारत के अन्य राज्यों की तरह होना चाहिए। 
  • जबकि जम्मू एवं कश्मीर का दूसरे वर्ग का यह मानना है कि इतनी भर स्वायत्तता पर्याप्त नहीं है। 

भारत सरकार को लेकर जम्मू एवं कश्मीर की आम जनता की शिकायतें :-

  1. जम्मू एवं कश्मीर की जनता का मानना है कि भारत सरकार ने वादा किया था कि कबायली घुसपैठियों से निपटने के बाद जब स्थिति सामान्य हो जाएगी तो भारत संघ में विलय के मुद्दे पर जनमत संग्रह कराया जाएगा। इसे पूरा नहीं किया गया। 
  2. अनुच्छेद 370 के तहत दिया गया विशेष दर्जा पूरी तरह अमल मे नहीं लाया गया, इससे स्वायत्तता की बहाली अथवा राज्य को ज्यादा स्वायत्तता देने की मांग की उठी। 
  3. दूसरी शिकायत यह है कि जाती है कि भारत के बाकी हिस्सों में जिस तरह लोकतंत्र पर अमल होता है उस तरह का संस्थागत लोकतांत्रिक बर्ताव जम्मू एवं कश्मीर में नहीं होता। 

1948 के बाद जम्मू और कश्मीर की राजनीति में आने वाले बदलाव :-

  1. कश्मीर की हैसियत को लेकर शेख अब्दुल्ला अपने विचार केंद्र सरकार से मेल नहीं खाते थे, इससे दोनों के बीच मतभेद पैदा हुए। 1953 में शेख अब्दुल्ला को बर्खास्त कर दिया गया कई सालों तक उन्हें नजरबंद रखा गया। शेख अब्दुल्ला के बाद जो नेता सत्तासीन हुए वे शेख अब्दुल्ला की तरह लोकप्रिय नहीं थे। केंद्र के समर्थन के दम पर ही यह राज्य में शासन चल सका। राज्य में हुए विभिन्न चुनावों में धांधली और गड़बड़ी के गंभीर आरोप लगे। 
  2. 1953-74 के बीच अधिकांश समय इस राज्य की राजनीति पर कांग्रेस का असर रहा कमजोर हो चुकी नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के समर्थन से राज्य में कुछ समय तक सत्तासीन रही लेकिन बाद में वह कांग्रेस से मिल गई इस तरह राज्य की सत्ता सीधे कांग्रेस के नियंत्रण में आ गई इस बीच शेख अब्दुल्ला और भारत सरकार के बीच सुलह की कोशिश जारी रही। 
  3. आखिरकार 1974 में इंदिरा गांधी के साथ शेख अब्दुल्ला ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और यह राज्य के मुख्यमंत्री बने उन्होंने नेशनल कांफ्रेंस को फिर से खड़ा किया और 1977 के राज्य विधानसभा के चुनाव में बहुमत से निर्वाचित हुए। 
  4. सन् 1982 मे शेख अब्दुल्ला की मृत्यु हो गई और नेशनल कांफ्रेंस के नेतृत्व की कमान उनके पुत्र फारूक अब्दुल्ला ने संभाली फारुख अब्दुल्ला भी मुख्यमंत्री बने परंतु राज्यपाल ने उन्हें बर्खास्त कर दिया और नेशनल कॉन्फ्रेंस को एक टूटे हुए ग्रुप में थोड़े समय के लिए राज्य की सत्ता संभाली। 
  5. केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से फारुख अब्दुल्ला की सरकार को बर्खास्त किया गया था इससे कश्मीर में नाराजगी के भाव पैदा हुए।                                                                                                      नेशनल कॉन्फ्रेंस                                    शेख                         फारूख                       उमर          अब्दुल्ला                     अब्दुल्ला                    अब्दुल्ला
  6. फारूक अब्दुल्ला की सरकार की बर्खास्तगी से इस विश्वास को धक्का लगा 1986 में नेशनल कांफ्रेंस ने केंद्र में सत्तासीन कांग्रेस पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन किया इससे लोगों को भी लगा कि केंद्र राज्य की राजनीति में हस्तक्षेप कर रहा है। 

नोट :- 

  • जम्मू कश्मीर में सन 2002 में हुए चुनाव में कांग्रेस पार्टी में पीपुल्स डेमोक्रेटिक अलायंस (PDP) के साथ मिलकर सरकार बनाई। 
  • आसिया अंद्राबी, यासीन मलिक जम्मू एवं कश्मीर के अलगाववादी नेता है। 
  • अकाली दल का गठन 1920 में हुआ था। 
  • अकाली दल ने पंजाबी-सुबा आंदोलन चलाया था। 
  • पूर्वोत्तर के सात राज्यों को सात बहने कहा जाता है। 
  • पूर्वोत्तर के राज्यों की सीमाएं पाँच देशों से मिलती है चीन, म्यांमार, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल। 
  • पूर्वोत्तर के तीन राज्य त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय अलग-अलग रियासत थे। 
  • असम में गैर-असमी लोगों के समुदाय के सदस्यों ने ‘ईस्टर्न इंडिया ट्राईबल यूनियन’ का गठन किया और बाद में यहा “ऑल पार्टी हेल्थ कॉन्फ्रेंस” में तब्दील हो गया। 
  • पूर्वोत्तर के राज्यों की सीमा चीन, मयांमार, बांग्लादेश से लगती है और इसलिए दक्षिण-पूर्व एशिया का प्रवेश द्वार माना जाता है। 
  • 1951 में “अंगमी जापू फ़िजो” के नेतृत्व नगा लोगों के एक तबके में अपने आप को आजाद घोषित कर दिया था।
  • मिज़ो नेशनल फ्रंट ने सशस्त्र अभियान 1966 में शुरू किया क्योंकि वे भारतीय संघ से आजाद रहना चाहते थे और स्वायत्तता की मांग कर रहे थे। 
  • AASU – All Asaam Students Union
  • त्रिपुरा में अप्रवासियों की समस्या ज्यादा गंभीर है क्योंकि यहां के मूल निवासी अपने ही प्रदेश में अल्पसंख्यक हो चुके हैं।
  • मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश की के लोगों को चकमा शरणार्थियों को लेकर गुस्सा है। 
  • पूर्वोत्तर का आँसू संगठन अप्रवासियों के खिलाफ आंदोलन की कामयाबी के बाद एक राजनीतिक पार्टी का हिस्सा बन गया। 

सन् 1987 के विधानसभा चुनाव को जम्मू एवं कश्मीर की जनता अलोकतांत्रिक क्यों मान रही थी?

  • क्योंकि नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन को भारी जीत मिली, फारूक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने परंतु लोग-बाग यह मान रहे थे,कि चुनाव में धांधली हुई है और चुनाव परिणाम जनता की पसंद की नुमाइंदगी नहीं कर रहे। 
  • 1980 के दशक से लोगों में प्रशासनिक अक्षमता को लेकर रोष पनप रहा था। 
  • लोगों के मन का गुस्सा यह सोचकर और भड़का की केंद के इशारे पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया के साथ हेरा-फेरी की जा रही है।
  • इन सब बातों से कश्मीर में राजनीतिक संकट उठ खड़ा हुआ इस संकट में राज्य में जारी उग्रवाद के बीच गंभीर रूप धारण किया। 

जम्मू एवं कश्मीर की राजनीति को अलगाववादियों ने किस प्रकार प्रभावित किया है? 

  • 1989 से अलगाववादी राजनीति का प्रारंभ हुआ अलगाववादी का एक तबका कश्मीर को अलग राज्य बनाना चाहता है यानी एक ऐसा तस्वीर जो ना पाकिस्तान का हिस्सा हो और ना ही भारत का। 
  • कुछ अलगाववादी समूह चाहते हैं कि कश्मीर का विलय पाकिस्तान में हो जाए। 
  • कश्मीर भारत का हिस्सा रहे लेकिन उसे और स्वायत्तता दी जाए। 
  • केंद्र सरकार ने विभिन्न अलगाववादी समूहों से बातचीत शुरू कर दी है अलग राष्ट्र की मांग की जगह और अलगाववादी समूह अपनी बातचीत में भारत संघ के साथ कश्मीर के रिश्ते को पुनरभाषित करने पर जोर दे रहे हैं। 

1980 के दशक में पंजाब में आने वाले बदलाव :-

  1. सामाजिक बनावट में बदलाव : किस प्रांत की सामाजिक बनावट विभाजन के समय पहली बार बदली थी बाद में इसके कुछ हिस्से से हरियाणा और हिमाचल प्रदेश राज्य बनाए गए इससे भी पंजाब की समाजिक संरचना बदली। 
  2. भाषाई आधार पर पुनर्गठित करना : 1950 के दशक में देश के कुछ हिस्सों को भाषा के आधार पर पुनर्गठित किया गया लेकिन पंजाब को 1966 तक इंतजार करना पड़ा। 
  • सन 1970 के दशक में अधिकारी के एक तथ्य में पंजाब के लिए स्वायत्तता की मांग उठाई। 1973 में पंजाब के आनंदपुर साहिब में एक सम्मेलन हुआ इस सम्मेलन को आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के नाम से जाना गया। 

आनंदपुर साहिब प्रस्ताव

👍क्या आनंदपुर साहिब प्रस्ताव संवाद को मजबूत करता है?

  1. आनंदपुर साहिब प्रस्ताव में क्षेत्रीय स्वायत्तता की मांग उठाई गई। 
  2. इस प्रस्ताव में सिख कौम की आकांक्षाओं पर जोर देते हुए सिखों के प्रभुत्व का ऐलान किया गया। 
  3. इस प्रस्ताव के माँगो मे केंद्र व राज्य सरकार के संबंधों को पुनर्भाषित करने पर बल दिया गया।  
  4. यह प्रस्ताव शनिवार को मजबूत करने की भी अपील करता है।   

आनंदपुर साहिब प्रस्ताव की मुख्य माँगे :-

  • अकाली दल ने पंजाब तथा पड़ोसी राज्यों के बीच पानी के बंटवारे के मुद्दे पर आंदोलन चलाएं उसने भारत से अलग होकर अगर राष्ट्र खाली स्थान बनाने की मांग की।

ऑपरेशन ब्लू – स्टार : जून 1984 को भारत सरकार ने पंजाब के स्वर्णमंदिर में एक सैनिक कार्यवाही की जिसे ‘ऑपरेशन ब्लू-स्टार’ के नाम से जाना गया। 

इंदिरा गांधी की हत्या :-

  • 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गाँधी के अंगरक्षकों ने उनके ही निवास पर उनकी हत्या कर दी। वेयंत सिंह और सतवंत सिंह
  • ये अंगरक्षक सिख थे और ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेना चाहते थे। 
  • सिख विरोधी दंगे में कुल 2000 से अधिक सिख मारे गए थे। 

शांति की ओर :-

  • 1984 के चुनावों के बाद सत्ता में नए प्रधानमंत्री (राजीव गाँधी) आए, जिन्होंने नरमपंथीओं से बातचीत की शुरुआत की। 
  • 1985 में एक समझौता हुआ

1. अकाली दल – अध्यक्ष – हरचंद सिंह लोंगोवाल

2. कांग्रेस – राजीव गांधी

पंजाब समझौता : अकाली दल के तत्कालीन अध्यक्ष हरचंद सिंह लोंगोवाल के साथ 1985 के जुलाई में एक समझौता हुआ इस समझौते को राजीव गांधी लोगोंवाल समझौता अथवा पंजाब समझौता कहा जाता है। 

पंजाब समझौता :- 

  • चंडीगढ़ पंजाब को दे दिया जाएगा। 
  • पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के बीच नदी जल बंटवारे
  • पंजाब हरियाणा के बीच सीमा विवाद के सुलझाव के लिए आयोग। 
  • उग्रवाद से प्रभावित लोगों को मुआवजा दिया जाएगा। 
  • पंजाब से विशेष सुरक्षा बल अधिनियम वापस लेना। 

पूर्वोत्तर राज्य :-

  • भारत के पूर्वोत्तर के राज्य को नॉर्थ-ईस्ट के नाम से भी जाना जाता है। भारत के अन्य राज्यों जैसे जम्मू-कश्मीर और पंजाब की तरह ही यहां भी क्षेत्रीय आकांक्षाओं का मुद्दा हावी रहा। पूर्वोत्तर में क्षेत्रीय आकांक्षाएं 1980 के दशक में एक निर्णायक मोड़ पर आ गई थी।पूर्वोत्तर के साथ राज्यों को सात बहने कहा जाता है। पूर्वोत्तर के राज्यों में देश की कुल 4% आबादी निवास करती है परंतु अब पूर्वोत्तर के राज्यों की जनसंख्या भारत की कुल जनसंख्या का 8% है। पूर्वोत्तर के सात राज्यों का कुल क्षेत्रफल 2,55,511 किलोमीटर है।

पूर्वोत्तर के सात राज्य :- 

  1. 1947 में असम
  2. 1960 मे नागालैंड राज्य बना
  3. 1972 में मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा राज्य बने
  4. 1987 मे अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम

19 सितंबर 2011 को सिक्किम को पूर्वोत्तर के सात बहनों के संग में शामिल कर दिया गया। 

 पूर्वोत्तर के राज्यों की राजनीति पर हावी तीन मुद्दे :-

  • स्वायत्तता की माँग
  • अलगाववादी के आंदोलन
  • बाहरी लोगों का विरोधी

स्वायत्तता की माँग :-

  • पूर्वोत्तर के राज्यों में जो तीन प्रमुख मुद्दे हावी रहा है उनमें स्वायत्तता की मांग प्रमुख है। आजादी के वक्त मणिपुर और त्रिपुरा को छोड़ दे तो यह पूरा इलाका असम कहलाता था। गैर-असमी लोगों को लगा कि असम की सरकार उन पर असमी भाषा को लादने व थोपने का प्रयास कर रही है तो इन लोगों ने राजनीतिक स्वायत्तता की मांग उठाई पूरे राज्य में असमी भाषा लादने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और दंगे हुए। बड़े जनजाति समुदाय के नेता असम से अलग होना चाहते थे।इन्हीं समुदाय के सदस्यों ने ‘ईस्टर्न इंडिया ट्राईबल यूनियन’ का गठन किया जो बाद में यानी 1960 के दशक में “ऑल पार्टी हील्स कॉन्फ्रेंस” में तब्दील हो गया। 

ऑल पार्टी हील्स कॉन्फ्रेंस (APHC) :- APHC के सदस्यों की मांग थी कि असम से अलग एक जनजातिय राज्य बनाया जाए। आखिरकार APHC के सदस्यों को सफलता मिली और असम को काटकर कई जनजातीय राज्य बने केंद्र सरकार ने ऐसे मुश्किल समय में पूर्वोत्तर की इन समस्याओं की तरफ ध्यान देते हुए असम से मेघालय मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश बनाया त्रिपुरा और मणिपुर को भी राज्य का दर्जा दिया गया देखा जाए तो 1972 तक पूर्वोत्तर में राज्य पुनर्गठन का कार्य पूरा हो चुका था परंतु फिर भी इन क्षेत्रों में स्वायत्तता की मांग खत्म ना हो के बाद भी असम से कई जनजाति समूह ने स्वायत्तता की मांग उठाई सन 1972 के बाद असम में स्वायत्तता की मांग उठने वाले समूह 

असम के जनजाति समूह:

  1. बोड़ो 
  2. करबी 
  3. दिमसा

इन समुदायों ने अपनी मांग को मनवाने के लिए जनमत तैयार करने का भी प्रयास किया के अलावा इन्होंने जन आंदोलन चलाए और विद्रोही करवाइयाँ की कई दफा ऐसा भी वाकी इलाके एक से ज्यादा समुदाय ने अपने दावेदारी जताई परंतु समस्या यह थी कि छोटे-छोटे और लगातार लघुतर राज्य बनाना संभव नहीं था। 

* सन 1972 के बाद असम में बोड़ो, करबी, दिमसा ने जो स्वायत्तता की मांग उठाई इसको वहां की सरकार ने किस प्रकार हल किया ?

  1. सन 1972 के बाद असम में कई जनजाति समूह में स्वायत्तता की मांग उठाई परंतु सरकार को इसकी मांगों को मानना उतना ही कठिन था जितना कि एक नए राज्य का गठन क्योंकि इससे ना केवल असम छोटे छोटे राज्यों में विभाजित हो जाता बल्कि छोटे राज्य बनाते चले जाना संभव नही था। 
  2. इस वजह से संघीय राजव्यवस्था के कुछ और प्रावधानों का उपयोग करके स्वायत्तता की मांग को संतुष्ट करने की कोशिश की गई और इन समुदायों को असम में ही रखा गया। 
  3. करबी और दिमसा समुदाय को जिला परिषद के अंतर्गत स्वायत्तता दी गई जबकि बोड़ो को हाल में ही स्वायत्तता परिषद का दर्जा दिया गया। 

भारत विभाजन से पूर्वोत्तर के इलाकों पर पड़े प्रभाव :-

  • ये इलाके अलग-थलग पड़ने के कारण ही यहां विकास नहीं हो पाया। 
  • इस इलाके में भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा काफी बड़ी है लेकिन पूर्वोत्तर और भारत के कुछ भागों के बीच संचार व्यवस्था बड़ी लाचार है। 
  • पूर्वोत्तर की राजनीति का स्वभाव ज्यादा संवेदनशील रहा। 
  • यह इलाका आर्थिक रूप से पिछड़े हैं।

अलगाववादी आंदोलन :- 1). स्वायत्तता की मांगों से निपटना आसान था क्योंकि संविधान में विविधताओं का समाहार संघ में करने के लिए पहले से ही प्रावधान मौजूद थे परंतु जब कुछ समूहों में अलग राज्य बनाने की मांग की और मैं मान से निपटना मुश्किल हो गया भारत सरकार को पूर्वोत्तर के दो राज्यों में अलगाववादी मांग सामना करना पड़ा। आज़ादी के बाद जब असम का गठन हो रहा था। तब “मिज़ो” पर्वतीय क्षेत्र को असम के अंदर ही स्वायत्त जीना बना दिया गया

परंतु कुछ मिज़ो लोगों का मानना था कि वे कभी भी ब्रिटिश इंडिया के अंग नहीं रहे इस लिए इसका भारत संघ से कोई नाता नहीं है बुरी स्थिति तो तब हुई जब सन 1959 मे मिज़ो पर्वतीय इलाके में भारी अकाल पड़ा परंतु असम की सरकार की अकाल से निपटने में पूरी तरह नाकाम रही इसी के बाद इस पर्वतीय क्षेत्रों में अलगाववादियों को जन समर्थन मिलना शुरू हुआ मिज़ो लोगों ने गुस्से में आकर ‘लालडेंगा’ के नेतृत्व में “मिजो नेशनल फ्रंट” बनाया। 

2). सन 1966 में मिज़ो ने आजादी की मांग करते हुए सशस्त्र विद्रोह का रास्ता अपनाया। इस तरह भारतीय सेना और मिज़ो विद्रोहियों के बीच दो दशक तक लड़ाई की शुरुआत हुई। मिज़ो नेशनल फ्रंट ने गुरिल्ला युद्ध किया पाकिस्तान जैसे देशों से समर्थन प्राप्त हुआ। इसके बाद मिज़ो विरोधियों ने पूर्वी पाकिस्तान में अपने ठिकाने बनाएं भारत सरकार ने विरोध गतिविधियों को दबाने के लिए जवाबी कार्यवाही की। सरकार की कार्रवाई से वहां की

आम जनता को भी कष्ट् का सामना करना पड़ा। सेना के इन कदमों से स्थानीय लोगों में क्रोध और बदलाव की भावना और तेज़ हुई। दो दशको तक चले बगावत मे हर हानि उठानी पड़ी इस बात को ध्यान में रखकर दोनों पक्षों के नेतृत्व में साझेदारी की पाकिस्तान में निर्वासित जीवन जी रहे लालडेंगा भारत आए और उन्होंने भारत के साथ बातचीत शुरू की। राजीव गांधी और लालडेंगा के बीच एक शांति समझौता हुआ। 

सन 1986 के समझौते का परिणाम :-

1). इस समझौते के तहत मिजोरम को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और कुछ विशेष अधिकार भी दिए गए। मिजो नेशनल फ्रंट में अलगाववादी संघर्ष की राह छोड़ने पर राजी हो गया। लालड़ेंगा मिजोरम के मुख्यमंत्री बने। यह समझौता मिजोरम के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। आज मिजोरम पूर्वोत्तर का सबसे शांतिपूर्ण राज्य है और उसने कला, साहित्य तथा विकास की दिशा में अच्छी प्रगति की है। 

2). दूसरा राज्य नागालैंड की कहानी भी मिजोरम की तरह है लेकिन लाल देना का अलगाववादी आंदोलन ज्यादा पुराना है और अभी इसका मिजोरम की तरह खुशगवार हल नहीं निकल पाया है। “अंगमी जापू फ़िजो” के नेतृत्व में नगा लोगों के एक तबके ने 1951 में अपने को भारत संघ से आजाद घोषित कर दिया था फिजों ने बातचीत के कई प्रस्ताव ठुकराए हिंसक विद्रोह के एक दौड़ के बाद नगा लोगों ने एक तबके ने भारत सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए लेकिन अन्य विद्रोहियों ने इस समझौते को नहीं माना इसलिए नागालैंड की समस्या का समाधान होना अभी बाकी है। 

राजीव गांधी और लालडेंगा के बीच शांति समझौता :-

  1. 1986 में राजीव गांधी और लाल देने के बीच शांति समझौता हुआ समझौते के अंतर्गत मिजोरम को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और कुछ विशेषाधिकार दिए गए। 
  2. मिजो नेशनल फ्रंट अलगाववादी संघर्ष की राह छोड़ने पर राजी हो गया लालडेंगा मुख्यमंत्री बने। 
  3. यह समझौते मिजोरम के हाथ इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। 
  4. आज मिजोरम पूर्वोत्तर का सबसे शांति राज्य हैं और उसने कला साहित्य तथा विकास की दिशा में अच्छी प्रगति की है। 

पूर्वोत्तर के राज्यों में प्रमुख मसले :-

  1. राजनीतिक व सामाजिक मसले : पूर्वोत्तर में बड़े पैमाने पर अप्रवासी आए हैं इससे इन लोग राज्यों में खास किस्म की समस्या पैदा हुई है। स्थानीय जनता इन्हें बाहरी मानती है और बाहरी लोगों के खिलाफ उनके मन में गुस्सा हैं भारत के दूसरे राज्य अथवा अन्य किसी देश से आए लोगों को यहां की जनता रोजगार के अवसरों और राजनीति सत्ता के एतवार से प्रतिद्वंदी के रूप में देखती है। स्थानीय लोग बाहर से आए लोगों के बारे में मानती है कि ये लोग यहां की जमीन हथिया रहे हैं। सन 1979-85 के बीच में असम में बाहरी लोगों के खिलाफ आंदोलन हुए असमी लोगों का मानना है कि बहुत से मुस्लिम यानी गैर-असमी बांग्लादेशी गैर कानूनी तरीके से असम में रह रही है। समस्या इस बात की है कि इन असमी लोगों को संदेश है कि अगर इन विदेशी लोगों को पहचान कर रहे अपने देश नहीं भेजा गया तो स्थानीय लोग अल्पसंख्यक हो जाएंगे। 
  2. आर्थिक मसले : असम में तेल चाय जैसे प्राकृतिक संसाधनों की मौजूदगी के बावजूद व्यापक गरीबी थी यहां की जनता ने माना कि असम के प्राकृतिक संसाधन बाहर भेजे जा रहे हैं और असम के लोगों को कोई फायदा नहीं हो रहा है। 

AASU (आँसू) :-

  • AASU- “आंल असम स्टुडेंट्स यूनियन” यह एक छात्र संगठन है और इसका जुड़ाव किसी भी राजनीतिक दल से नहीं है। 
  • आंसू आंदोलन की मुख्य मांगे : इस आंदोलन की मुख्य मांगे यह थी कि सन 1951 के बाद जितने भी लोग असम में आता है बचे हैं उन्हें असम से वापस भेजा जाए। 

आंसू की मुख्य विशेषताएं :- 

  1. इस आंदोलन को असम के कुछ विद्यार्थियों द्वारा शुरू किया गया था परंतु इस आंदोलन ने विरोध करने के कई तरीकों को अपनाया। 
  2. असम के हर तबके के लोगों का समर्थन हासिल किया। आंदोलन को पूरे असम के लोगों का समर्थन मिला। 
  • आंसू आंदोलन के परिणाम : आंदोलन के दौरान हिंसक और त्रसद जैसी घटनाएं भी हुई बहुत से लोगों को इस आंदोलन मे जान गवानी पड़ी और धनसम्पति का नुकसान हुआ। आंदोलन के दौरान रेलगाड़ियों की आवाजाही तथा बिहार स्थित बरौनी तेल शोधक कारखाने को तेल आपूर्ति को रोकने की भी कोशिश की गई। 

आँसू का इतिहास :-

  1. सन 1979 में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन ने पूर्वोत्तर के राज्यों में खासकर असम में विदेशियों के खिलाफ एक आंदोलन की शुरुआत की। 
  2. इस आंदोलन के ज्यादातर सदस्य विद्यार्थी थे और इस आंदोलन का राजनीति से कोई संबंध नहीं था। 
  3. यह आंदोलन अवैध अप्रवासी बंगाली लोगों के दबदबे तथा मतदाता सूची में लाखों अप्रवासियों के नाम दर्ज कर लेने के खिलाफ था। 
  • असम समझौते : सन 1985 में राजीव गांधी और आँसू के नेताओं के बीच एक समझौता हुआ जिसे असम समझौते के नाम से जाना गया। 

असम समझौते के परिणाम :-

  • इस समझौते का मुख्य परिणाम या निकला की यह आंलोग केलन जिन समस्याओं के निवारण को लेकर शुरू हुआ था उसमें इस आंदोलन को काफी सफलता प्राप्त हुई। 
  • सन 1979-85 तक न केवल आसाम मे अशांति का माहौल रहा बल्कि समस्त पूर्वोत्तर के राज्य इस आंदोलन से प्रभावित रहे। 
  • परंतु 1985 में राजीव गांधी और आंसू के नेताओं के बीच हुए समझौते के बाद आंसू के सदस्य शांत मुद्रा में नजर आए। 
  • इन्हें पहली बार लगा कि सरकार उनकी मांग को नजरअंदाज नहीं करेगी। अगर देखा जाए तो उनकी सोच भी सही साबित हुई। 

असम के समझौते पर सहमति :-

  1. इस समझौते के अंतर्गत यह तय किया गया कि जो लोग बांग्लादेश युद्ध के दौरान अथवा उसके बाद के सालों में असम आए हैं एक ही पहचान की जाएगी और उन्हें सम्मान पूर्वक अपने वतन भेज दिया जाएगा।
  2. इस आंदोलन की सफलता के बाद आँसू और असमगन संग्राम परिषद मैं अपने आपको एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी के रूप में संगठित किया और इस पार्टी का नाम असम गण परिषद रखा गया।
  3. इसके अलावा इस पार्टी को असम में एक बार सरकार बनाने का मौका भी मिला। 
  4. सन 1985 में असम गण परिषद इस वायदे के साथ सत्ता में आई थी कि विदेशी लोगों की समस्या को सुलझा लिया जाएगा और एक स्वर्णिम असम का निर्माण किया जाएगा।

निष्कर्ष : असम समझौते के बाद ना केवल असम में बल्कि समस्त पूर्वोत्तर के राज्यों में शांति कायम हुई है और यहां की राजनीति का चेहरा भी बदला है लेकिन यहां अभी भी यहां पर आप्रवासियों की समस्या को नही सुलझाया जा सकता हैं। बाहरी मसला अभी भी असम और पूर्वोत्तर के राज्यों की राजनीति में एक जीवंत मसला है। 

यह त्रिपुरा में ज्यादा गंभीर है क्योंकि यहां के मूल निवासी अपने ही प्रदेश में अल्पसंख्यक हो चुके हैं मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश के लोगों में भी किसी भय के कारण चकमा शरणार्थियों को लेकर गुस्सा है। 

दिसंबर 1961 में भारत सरकार ने गोवा में अपनी सेना भेजी और पुर्तगालियों से आजाद करवाया। 

गोवा भारतीय संघ का हिस्सा 1987 में बना गोवा की मुख्य राजकीय भाषा कोकणी है। 

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