Class 10 Hindi Chapter 3 सवैया और कवित्त

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पाठ की रूपरेखा 

देव द्वारा रचित प्रथम सवैये में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया गया है, जो सामंती प्रवृत्ति का है तथा ‘कवित्त’ के अंतर्गत प्रथम कवित्त में वसंत ऋतु को बालक के रूप में दर्शाकर प्रकृति के साथ उसका संबंध स्थापित किया गया है। दूसरे कवित्त में शरदकालीन पूर्णिमा की कांति को अनेक उपमानों के माध्यम से वर्णित किया गया है। शब्दों की आवृत्ति के द्वारा नया सौंदर्य पैदा करके उन्होंने सुंदर ध्वनि चित्र प्रस्तुत किए हैं। यहाँ पर कवि ने अलंकारिता एवं श्रृंगारिकता का प्रमुखता से प्रयोग किया है।

कवि-परिचय 

हिंदी साहित्य के रीतिकाल के कवि देव का जन्म 1673 ई. में उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले में हुआ। उनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी  था। देव के काव्य ग्रंथों की संख्या कुछ विद्वानों द्वारा 52 मानी गई, कुछ ने 72 तथा कुछ ने 25 स्वीकार की है। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- भवानीविलास , रसविलास, काव्यरसायन, भावविलास आदि। देव की काव्य रचनाओं में श्रृंगार रस की प्रमुखता है। उन्होंने संयोग श्रृंगार व वियोग श्रृंगार का वर्णन अपनी रचनाओं में किया है।

प्रेम के सहज चित्र उन्होंने राधा-कृष्ण के माध्यम से प्रस्तुत किए हैं। दरबारी संस्कृति, प्रकृति व आश्रयदाताओं का चित्रण भी इन्होंने अपनी रचनाओं में किया है। देव ने छंद योजना, अलंकार, तत्सम शब्दावली आदि का प्रयोग भी अपनी रचनाओं में किया है। कवि देव का निधन 1767 ई. में हुआ।

सवैया  1

पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि के धुनि की मधुराई।

सावरे अंग लसे पट पीत, हिये हुलसे बनमाल सुहाई।

माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुहाई।. 

जौ जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीबरजदूलह ‘देव’ सहाई।

भावार्थ 

कवि देव वसंत ऋतु की कल्पना कामदेव के शिशु के रूप में करते हुए कहते हैं कि पेड़ की डाली उस बालक का पालना है तथा उस पर नए-नए पत्तों का बिस्तर बिछा हुआ है। बालक ने सुंदर फूलों का झबला पहना हुआ है, जो उसके शरीर की शोभा को और भी अधिक बढ़ा रहा है। हवा उसे झूला झुला रही है। मोर और तोता मीठे स्वर में बातें करके उसका मन बहला रहे हैं। कोयल आकर उसे हिलाती है तथा ताली बजा-बजाकर उसे प्रसन्‍न कर रही है अर्थात्‌ उसका मन बहला रहे हैं।

कमल की कली रूपी नायिका अपने सिर पर लताओं की साड़ी का पल्‍ला डालकर पराग रूपी राई और नमक से उसकी नज़र उतारने की रस्म पूरी कर रही है ताकि बसंत रूपी शिशु को किसी की नज़र न लगे। राजा कामदेव के वसंत रूपी शिशु को प्रातःकाल गुलाब चुटकी बजा-बजाकर जगा रहा है। भाव यह है कि यहाँ वसंत को बालक रूप में दिखाकर प्रकृति के साथ प्रेम भरा संबंध स्थापित किया गया है। भाव यह है कि चारों ओर वसंत ऋतु का सौंदर्य छाया हुआ है, जिसके कारण पृथ्वी अत्यंत सुंदर लग रही है। 

कवित्त 2

फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर, 

उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद। 

बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए देव, 

दूध को सो फेन फैल्यो ऑंगन फरसबंद। 

तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति, 

मोतिन की जोति मिलयो मल्लिका को मकरंद। 

आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै, 

प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।। 

भावार्थ

इसमें कवि ने शरदकालीन पूर्णिमा की रात में चाँद-तारों से भरे आकाश की शोभा का वर्णन किया है। पूर्णिमा की रात में आकाश संगमरमर के पत्थर से बने हुए मंदिर के समान लग रहा है। उसकी सुंदरता श्वेत दही के समुद्र के समान उमड़ रही है, वह कम नहीं हो रही है। वह सुंदरता दूध में से निकले झाग के समान आकाश रूपी मंदिर के अंदर और बाहर फैल रही है, जिसके कारण उसका ओर-छोर दिखाई नहीं दे रहा है। मंदिर के आँगन में दूध के झाग के समान चाँदनी आभा का फर्श बना हुआ है।

आकाश रूपी मंदिर में तारें युवतियों के समान खड़े झिलमिलाते से प्रतीत हो रहे हैं और उनकी चमक ऐसी लग रही है जैसे मोतियों की चमक मल्लिका के फूलों के रस के साथ मिलकर प्रदीप्त हो उठी है। आकाश रूपी मंदिर का सौंदर्य शीशे के समान पारदर्शी लग रहा है और उसमें अपनी चाँदनी बिखेरता चाँद, प्यारी राधा के प्रतिबिंब के समान प्यारा लग रहा है। भाव यह है कि शरदकालीन पूर्णिमा की रात में चाँद-तारों से भरा आकाश अपनी सुंदरता एवं कांति से सभी को मंत्र-मुग्ध कर रहा है। 


Class 10 Hindi Chapter 3 Question Answer kritika

क्षितिज – काव्य खंड – सवैया, कवित्त – देव प्रश्न अभ्यास

प्रश्न1. कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है।

उत्तर  कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है, कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ श्री कृष्ण के लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक इसलिए कहा है, क्योंकि श्री कृष्ण मंदिर के दीपक के समान अपने तेज़ से संसार रूपी मंदिर में प्रकाश भरते हैं उनके ज्ञान रूपी प्रकाश से मार्ग-दर्शन पाकर ही सांसारिक लोग कर्मपथ पर अग्रसर होते हैं। जिस तरह एक दीपक पूरे मंदिर को रोशन कर देता है उसी तरह कृष्ण पूरे संसार को रोशन कर देते हैं। इसलिए उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक कहा गया है।

प्रश्न 2. पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए, जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है ?

उत्तर

अनुप्रास अलंकार –
(i) कटि किंकिन कै धुनि की मधुराई।
(ii) साँवरे अंग लसै पट पीत।
(iii) हिय हुलसै बनमाल सुहाई।

रूपक अलंकार-
(i) मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
(ii) जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर।

प्रश्न 3. निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।

उत्तर – श्री कृष्ण के पैरों में घुघरू हैं, जो मधुर आवाज़ में बज रहे हैं। उनकी कमर में करधनी बँधी हुई है, जिसकी धुन भी मधुर है। उनके साँवले अंगों पर पीले वस्त्र शोभायमान हो रहे हैं, गले में बनमाल शोभित है। कृष्ण का रूप अत्यंत सुंदर तथा मनमोहक है। श्री कृष्ण की वेशभूषा व उनके शारीरिक सौंदर्य का वर्णन है। ब्रजभाषा का माधुर्य पूरे काव्यांश में छलकता प्रतीत होता है। काव्यांश सवैया छंद में रचित है। ‘कटि किंकिनि कै’, ‘पट-पीत’, ‘हिये हुलसै’ आदि में अनुप्रास अलंकार है। नूपुर और कटि किंकिन की ध्वनि में नाद-सौंदर्य है। माधुर्य गुण की मधुरता का प्रसार है। चित्रात्मक शैली का सौंदर्य है। तत्सम शब्दावली का सुंदर प्रयोग है।

प्रश्न 4. दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज वसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर – परंपरागत वसंत वर्णन में बाग-बगीचों की हरियाली, खिले फूलों का सौंदर्य, कोयल का मधुर गीत, मोर का नाचना, बागों में झूले पड़ना आदि मनोहारी वर्णन होते हैं, परंतु यहाँ कवि ने वसंत की सुंदरता को कामदेव के बालक के रूप में, डालियों का पालना, नए पत्तों का बिछौना, पुष्प रूपी झबला, कमल की कली द्वारा नज़र उतारना, गुलाब का चुटकी बजा नन्हें शिशु को जगाना आदि परंपरागत वर्णन से भिन्न है। वसंत कामदेव रूपी राजा का राजकुमार है अतः सारी प्रकृति पलक-पाँवड़े बिछाए स्वागत के लिए तत्पर है। इस वर्णन के आधार पर कहा जा सकता है कि बाल रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से भिन्न है।

प्रश्न 5. ‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – प्रातःकाल वसंत रूपी बालक को निद्रा से जगाने के लिए गुलाब चुटकी बजाकर खिल उठता है अर्थात् में प्रातःकाल जब गुलाब खिलता है, तो ऐसा लगता है, मानो चटककर सारी प्रकृति को जगा रहा है। जैसे माँ कोमल स्पर्श व चुटकी बजा बच्चे को उठाती है, वैसे ही वसंत की शोभा कोमल फूलों व प्रकृति की सुंदरता से है।

प्रश्न 6. चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है?

उत्तर
 – कवि ने चाँदनी रात की सुंदरता को अनेक रूपों में देखा है, जैसे –
• स्वच्छ सुधामयी चाँदनी चारों तरफ़ इस तरह फैली हुई है, जैसे स्फटिक की शिलाओं से कोई सुंदर मंदिर बनाया गया हो।
• दही का समुद्र अधिक तीव्रता से उमड़ रहा हो।
• आँगन के फर्श पर दूध के पारदर्शी झाग फैले हुए
• नायिका के रूप में जो तारों से सुसज्जित है।
• अंबर रूपी दर्पण के रूप में।

प्रश्न 7. ‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ कि इसमें कौन- सा अलंकार है?

उत्तर अपूर्व सुंदरी राधा के सौंदर्य के समक्ष चंद्रमा का सौंदर्य भी मंद पड़ जाता है। वह उसकी परछाई मात्र लगता है। इस आधार पर इस पंक्ति में व्यतिरेक अलंकार है। व्यतिरेक अलंकार में उपमान को उपमेय से तुच्छ बताया जाता है। इसका मतलब है कि चाँद को राधा से नीचे दर्जे का दिखाया गया है।


प्रश्न 8. तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?


उत्तर
 कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए निम्नलिखित उपमानों का प्रयोग किया है-

(i) प्राकृतिक स्फटिक की शिलाओं से बना मंदिर।

(ii) दही का समुद्र अधिक तीव्रता से उमड़ा हो।

(ii) आँगन के फर्श पर दूध के पारदर्शी झाग।

(iv) तारों से भरी रात जैसे युवती ने सितारों से जड़े वस्त्र पहने हों।
(v) अंबर का आईने के समान चमकना।

प्रश्न 9. पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।

उत्तर

देव की काव्यगत विशेषताएँ-
(i) प्राकृतिक-सौंदर्य का चित्रण बहुत अच्छे ढंग से किया है।
(ii) कोमल ब्रजभाषा का प्रयोग है। भाषा में सरसता, मधुरता और चित्रात्मकता के गुण हैं।
(ii) अनेक अलंकारों का प्रयोग है। अनुप्रास, रूपक, उत्प्रेक्षा, उपमा, व्यतिरेक अलंकार उनके काव्य में मुख्य रूप से उभरकर सामने आते हैं।

(iv) चित्रात्मक-वर्णन तथा अनूठी कल्पना-शक्ति का प्रयोग है।
(v) परंपरा से हट कर वसंत का शिशु रूप में चित्रण है।
(vi) भाषा भावानुरूप, प्रवाहमयी तथा चित्रात्मक है।
(vii) कवित्त, सवैया छंद अपनाया गया है।
वस्तुतः देव की नज़र सौंदर्य तथा वैभव पर ही टिकी रही। जीवन के दुखद पक्षों को टटोलने का अवकाश उनकी लेखनी के पास नहीं था।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 10. आप अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।

उत्तर – पूर्णिमा की रात चारों तरफ़ चाँदनी छिटकी हुई होती है। ऐसा लगता है, मानो वन देवी शारदा ने चंद्रिका रूपी चादर ओढ़ी हुई हो। सारी धरती उज्ज्वल चाँदनी से नहाई हुई लगती है। लोहे की जालियों पर पड़ी चाँदनी ऐसी लगती है, मानो वे जालियाँ चाँदी की बनी हैं। इस दूधिया चाँदनी में सारी सृष्टि नहाई हुई लगती है। ठंडी-ठंडी हवा मनभावन लगती है। ऐसा अनुभव होता है, मानो प्रकृति ने अपना जादू बिखेर दिया हो।

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